गोरखपुर का इतिहास (History of Gorakhpur in Hindi)
गोरखपुर उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में स्थित एक ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व वाला शहर है। यह राप्ती और रोहिणी नदियों के तट पर बसा हुआ है और अपने प्राचीन मंदिरों, सूफी परंपरा और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के लिए प्रसिद्ध है।
प्राचीन इतिहास
- महाजनपद काल – गोरखपुर का इतिहास लगभग 2500 साल पुराना है। यह क्षेत्र प्राचीन काल में कोसल महाजनपद का हिस्सा था।
- मौर्य एवं गुप्त काल – मौर्य और गुप्त साम्राज्य के समय यह क्षेत्र व्यापार और धर्म का केंद्र रहा।
- बौद्ध एवं जैन प्रभाव – गोरखपुर के आसपास के क्षेत्रों में बौद्ध और जैन धर्म का प्रभाव रहा है।
मध्यकालीन इतिहास
- नाथ परंपरा का उदय – 11वीं-12वीं शताब्दी में गोरखनाथ (नाथ संप्रदाय के प्रमुख संत) ने यहाँ गोरखनाथ मंदिर की स्थापना की, जो आज भी एक प्रमुख तीर्थ स्थल है।
- मुगल काल – अकबर के समय गोरखपुर जौनपुर सूबे का हिस्सा था। बाद में यह अवध के नवाबों के अधीन रहा।
आधुनिक इतिहास
- ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन – 1801 में अवध के नवाब ने गोरखपुर को अंग्रेजों को सौंप दिया।
- 1857 की क्रांति – गोरखपुर स्वतंत्रता संग्राम का एक सक्रिय केंद्र था। यहाँ के सैनिकों और किसानों ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की।
- भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन – गोरखपुर के गणेश शंकर विद्यार्थी, राम प्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व
- गोरखनाथ मंदिर – नाथ संप्रदाय का प्रमुख केंद्र।
- गीता प्रेस – हिंदू धार्मिक ग्रंथों का विश्वप्रसिद्ध प्रकाशन केंद्र।
- सूफी परंपरा – शाही मस्जिद और दरगाहों का शहर।
आज का गोरखपुर
आज गोरखपुर एक प्रमुख शैक्षणिक, औद्योगिक और परिवहन केंद्र है। यहाँ गोरखपुर विश्वविद्यालय, आईआईटी (IIT), और रेलवे जंक्शन जैसी महत्वपूर्ण संस्थाएँ स्थित हैं।
गोरखपुर का इतिहास भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और राजनीतिक विरासत को दर्शाता है। यह शहर आज भी अपनी ऐतिहासिक महत्ता और आध्यात्मिक आकर्षण के लिए जाना जाता है।
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