Mathura Vrindavan Gokul | वृंदावन के दर्शनीय स्थल , History of India
मथुरा का एक प्राचीन इतिहास और कृष्ण जी की मातृभूमि और जन्मस्थान भी है जो यदु वंश में पैदा हुऐ थे मथुरा संग्रहालय में भारत के पुरातात्विक सर्वेक्षण के अनुसार, शहर का सबसे पुराना भारतीय महाकाव्य रामायण में उल्लेख किया गया है। महाकाव्य में, इक्ष्वाकू राजकुमार शत्रुघना ने लवणसुरा नामक राक्षस को मार दिया और भूमि का दावा किया। इसके बाद, यह स्थान मधुवन के रूप में जाना जाने लगा क्योंकि यह मोटे तौर पर जंगली थी, फिर मधुपुरा और बाद में मथुरा।
छठी शताब्दी में बीसीई मथुरा सुरसेना साम्राज्य की राजधानी बन गई। बाद में शहर को मौर्य साम्राज्य (चौथी से दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व) द्वारा शासित किया गया था। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में लिखने वाले मेगास्थेन्स ने मथुरा को Μέθορα (मेथोरा) नाम के तहत एक महान शहर के रूप में उल्लेख किया है। ऐसा लगता है कि यह कभी भी निम्नलिखित शुंगा राजवंश (2 शताब्दी ईसा पूर्व) के प्रत्यक्ष नियंत्रण में नहीं था क्योंकि मथुरा में शूंगा उपस्थिति का एक पुरातात्विक अवशेष कभी नहीं पाया गया था। मथुरा 180 ईसा पूर्व और 100 ईसा पूर्व के बीच कुछ समय के दौरान भारत-ग्रीक के नियंत्रण, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण में आ गया था, और यवनराज्य शिलालेख के अनुसार 70 ईसा पूर्व के रूप में तब तक बना रहा, जो मगहेरा में पाया गया था, जो कि 17 किलोमीटर दूर है (11 मील) मथुरा से। ब्रह्मी लिपि में इस शिलालेख के 3 लाइन पाठ के उद्घाटन का अनुवाद इस प्रकार है: “यवन साम्राज्य के 116 वें वर्ष में …” या “यवाना हेगेमोनी के 116 वें वर्ष में” (“यवनाराज्य”) हालांकि, यह भी संबंधित है मथुरा में स्थानीय शासकों के मूल मित्र वंश की उपस्थिति, लगभग उसी समय फ्रेम (150 ईसा पूर्व -50 ईसा पूर्व) में, संभवतः भारत-ग्रीक के साथ एक वास रिश्ते को इंगित करती है।
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स्थानीय शासनकाल की अवधि के बाद, 1 शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान मथुरा को भारत-सिथियन लोगों ने विजय प्राप्त की थी। मथुरा के इंडो-सिथियन सट्रप्स को कभी-कभी गुजरात और मालवा में “पश्चिमी सतही” शासन के विरोध में “उत्तरी सतपप्स” कहा जाता है। राजुवुला के बाद, कई उत्तराधिकारी कुशन के लिए वासल के रूप में शासन करने के लिए जाने जाते हैं, जैसे कि “ग्रेट सतप” खारपल्लाना और “सतप” वानस्पारा, जो सारनाथ में खोजे गए शिलालेख से ज्ञात हैं और कनिष्क के तीसरे वर्ष के दिनांक में हैं ( सी। 130 सीई), जिसमें वे कुशंस के प्रति निष्ठा का भुगतान कर रहे थे। माथुरान कला और संस्कृति कुशन वंश के तहत अपने चरम पर पहुंच गई, जिसमें मथुरा उनकी राजधानियों में से एक था, दूसरा पुरुषापुरा (आधुनिक दिन पेशावर, पाकिस्तान) था।
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फैक्सियन ने शहर को 400 सीई के बारे में बौद्ध धर्म के केंद्र के रूप में उल्लेख किया है, जबकि उनके उत्तराधिकारी जुआनजांग, जिन्होंने 634 सीई में शहर का दौरा किया था, ने इसे मोटोउलो के रूप में उल्लेख किया है, जिसमें रिकॉर्डिंग है कि इसमें बीस बौद्ध मठ और पांच ब्राह्मण मंदिर शामिल हैं। बाद में, वह पूर्व पंजाब के थानेसर, जलंधर से पूर्व में गए, मुख्य रूप से कुल्लू घाटी में थेरावाड़ा मठों की यात्रा करने और यमुना नदी पर दक्षिण-पूर्व में बैराट और फिर मथुरा में जाने के लिए चढ़ाई करने से पहले।
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शहर को बर्खास्त कर दिया गया था और इसके कई मंदिर 1018 सीई में गजनी के महमूद और फिर सिकंदर लोढ़ी द्वारा नष्ट हुए, जिन्होंने 148 9 से 1517 सीई तक दिल्ली के सल्तनत पर शासन किया था। सिकंदर लोढ़ी ने ‘बट शिकान’, ‘हिंदू देवताओं के विनाशक’ का उल्लेख अर्जित किया। मुगल सम्राट औरंगजेब ने अपने शासन के दौरान शाही-ईदगाह मस्जिद का निर्माण किया, जो कि श्री कृष्ण जन्माभूमि के निकट है, जो एक हिंदू मंदिर पर माना जाता है।
मथुरा, हिंदुओं के सबसे चहेते, श्री कृष्ण का जन्मस्थल है। रास-रचैया, गिरिधर, गोपाल, कन्हैया — ऐसे अनगिनत नाम हैं इनके। अपनी चंचल बातों से सबको मोहित कर, ये सबके चहेते बन जाते थे। रास लीला हो या जन्माष्टमी व होली का पर्व यहाँ सब बड़े ही भव्य तरीके से मनाया जाता है। यह भारत के पवित्र स्थलों में से एक है। मुरलीधर जब बंसी बजाते थे तब सब दीवाने हो जाते थे और पूरा मथुरा उस स्वर से गूँज उठता था। उस मधुर स्वर की गूँज जैसे आज भी कानों में सुनाई पड़ती है। मथुरा के मंदिर अभी भी श्री कृष्ण की स्मृति बाँधे हुए है। इसी स्मृति से मथुरा का हर कोना पुलकित हो उठता है।
कृष्ण नगरी से जुडी ऐसी अनेकों कथाएँ हैं कि भगवान कृष्ण ने हमेशा बुराई का विनाश करते हुए मथुरा वासियों की सहायता की है। अपने मामा कंस द्वारा किए गए सभी दुराचार का मुँह तोड जवाब देकर उसे सबक सिखाया है। जब-जब मथुरावासियों पर संकट आया श्री कृष्ण उन सभी संकटों से लोगों को मुक्त करवाया। यह स्थान कृष्ण की अनगिनत महान कथाओं का प्रमाण है। जिन्हें लोगों ने आज भी याद रखा है और समय-समय पर इनका संचार किया है।
मथुरा के मंदिर — Temples of Mathura
यहाँ का माहौल भक्ति-भाव में डूबोने वाला है। जहाँ आकर आप मन की शांति पाऐंगे। मथुरा जी के मंदिर विश्वभर में प्रसिद्ध हैं। उन्हीं में से कुछ मंदिरों की सूची यहाँ दी गई है:
श्री कृष्ण जन्मभूमी मंदिर — Shri Krishna Janmabhoomi Temple

ये वही स्थान है जहाँ श्री कृष्ण ने जन्म लिया था। मथुरा के मंदिर में इसका सर्वोच्च स्थान है। यहाँ के स्थानीय लोगों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण राजा वीर सिंह बुंदेल ने करवाया था जो श्री कृष्ण के ही वंशज थे। यहाँ कंस का पत्थर से बना बड़ा कारावास है। यहाँ का सबसे आकर्षक मंदिर का वो छोटा कारावास है जहाँ कृष्ण का जन्म हुआ था। यह मंदिर अपनी पवित्रता से आपके रोम-रोम को साधना में लीन कर देगा। बहुत ही खुबसूरती से इसे बनाया गया है। यहाँ कृष्ण की सफ़ेद मार्बल से बनी मूर्ति है जो अपने अस्तित्व का परिचय देती है। यहाँ आने का सबसे उचित समय है जन्माष्टमी व होली का पर्व। ये त्योहार भव्यता से यहाँ मनाया जाता है !
द्वारकाधीश मंदिर — Dwarkadhish Temple

यह भारत का मशहूर व ऐतिहासिक पवित्र स्थल है जो श्री कृष्ण को समर्पित है। इस मंदिर का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि कृष्ण द्वारका में आकर बस गए और उन्होंने अपनी आखरी साँस भी यहीं ली। मंदिर में काले मार्बल से बनी कृष्ण की प्रतिमा है और उसी के समीप सफ़ेद मार्बल से बनी उनकी प्रिय राधा की प्रतिमा भी है जिनकी सुंदरता अतुल्नीय है। इसलिए यहाँ मथुरा के मंदिर की फोटो लेना आवश्यक हो जाता है। श्रद्धालु यहाँ अधिकतर जन्माष्टमी के अवसर पर आते हैं क्योंकि उस वक्त यहाँ का नज़ारा आँखों में घर कर जाता है।
प्रेम मंदिर — Prem Mandir

मथुरा वृंदावन यात्रा करते वक्त अगर आप मथुरा का प्रेम मंदिर देखना भूल जाते है तो आपको पछतावा होगा। भगवान के प्रति प्रेम को समर्पित है यह मंदिर। मंदिर में राधा-कृष्ण व राम-सीता की मूर्तियाँ हैं। मंदिर का माहौल शांतिपूर्ण है जो अंतःकरण तक शांति का संचार कर देगा। 2001 में इस मंदिर को जगदगुरु श्री कृपालुजी महाराज ने आकार दिया। बृजवासियों की उपस्थिति से आरती के समय का माहौल आध्यात्मिकता में लीन कर देता है। सफ़ेद मार्बल से बने इस मंदिर की वास्तुकला भी तारीफ के काबिल है।
गीता मंदिर — Geeta Mandir

यह मंदिर बिरला मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। मथुरा के मंदिर में यह मंदिर भी विशेष है। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण है मंदिर की दीवारों पर श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को युद्ध भूमि में दिए गए उपदेशों की नक्काशी। जिसे बड़ी महीनता व कुशलता के साथ दीवारों पर बनाया गया है। मंदिर में प्रवेश करते ही स्तंभों पर लिखे भगवद्गीता के 18 अध्यायों के आप साक्षी बनेंगे। मंदिर का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से भारतीय व पाश्चात्य वास्तुकला से किया गया है। यहाँ कृष्ण, नारायण, राम, लक्ष्मी व सीता की मनोरम मूर्तियाँ मौजूद हैं।
बाँके बिहारी मंदिर — Banke Bihari Temple

बाँके बिहारी-श्री कृष्ण का एक और नाम जिसका अर्थ है: परम आनंदकर्ता। सबको आनंद देने वाला। यहाँ आप मदमस्त होकर खड़े श्रीकृष्ण को हाथ में बाँसुरी लिए हुए देखेंगे। कृष्ण जब बेहद खुश होते थे तब वह आनंदित होकर बाँसुरी बजाते थे। इसी को यहाँ प्रतिमा का आकार दिया गया है। जिसे देखकर आपके चहरे पर भी मुस्कुराहट आ जाएगी। मंदिर के मुख्य प्रवेश पर गहरे पीले व भूरे रंग की पारंपरिक डिज़ाइन बनाया गया है। यह मंदिर का मुख्य आकर्षण है।
नीधिवन मंदिर — Nidhivan Temple

यह मंदिर धार्मिक यात्रियों के साथ-ही-साथ प्रकृति प्रेमियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। मंदिर के चारों तरफ पेड़-ही-पेड़ हैं जो ताज़गी का एहसास कराते हैं। यह मान्यता है कि सूरज ढलने के बाद मंदिर का प्रवेश द्वार बंद कर दिया जाता हैं क्योंकि उस वक्त श्री कृष्ण राधा व गोपियों के साथ रासलीला करते हैं। यह एक रहस्यात्मक मंदिर है जिसकी पहेली अभी तक सुलझी नहीं है। इसी कारण यह मंदिर चर्चा का विषय बना रहता है।
महाविद्या देवी मंदिर — Mahavidya Devi Temple

यह मथुरा देवी का मंदिर है जो पहाड़ों पर स्थित है जहाँ तक पहुँचने के लिए 30–40 सीढ़ियाँ का रास्ता है। माना जाता है कि नंद बाबा जिन्होंने श्री कृष्ण का पालन किया था यह उनकी कुल देवी है। नंद इनकी पूजा-अर्चना करने यहाँ आते थे। मंदिर की आकृति बहुत ही सरल है पर इसकी भी एक अलग मान्यता है। इसलिए यह यात्रियों के बीच प्रचलित है। मंदिर में सफ़ेद मार्बल से बनी देवी की मूर्ति है जिनकी आँखों में दैव्य चमक है।
श्री रंगजी मंदिर — Shri Rangji Temple

वृंदावन का सबसे बड़ा मंदिर जो भगवान विष्णु को समर्पित है। द्रविड़ वास्तुकला से इस मंदिर के हर कोने को कुशलता से बनाया गया है। मंदिर में विष्णु की शेषनागों के नीचे विश्राम करते हुए एक सुंदर प्रतिमा है। इस पावन मंदिर में राम, लक्ष्मण, सीता, नरसिंहमा, वेणुगोपाल, रामानुजाचार्य की मूर्तियाँ भी हैं। मंदिर के नियम काफी सख्त है तो आपको नियमों का पालन करना होगा।
श्री कृष्ण बलराम मंदिर — Shri Krishna Balram Temple

प्रवेश द्वार के दोनों तरफ बने मोर आपका स्वागत करने के लिए बनाए गए हैं। सफ़ेद मार्बल से बना यह मंदिर अपनी आकर्षक वास्तुकला का प्रमाण देता है। मंदिर के तीन अल्तर है-पहले में श्री श्री गौरा निताई की प्रतिमा है। दूसरे में कृष्ण व बलराम की मूर्ति है व तीसरे में श्री श्री राधा श्याम सुंदर और गोपी-विशाखा व ललिता की मूर्ति है।
श्री राधा वल्लभ मंदिर — Shri Radha Vallabh Temple

आज से 450 वर्ष पूर्व मथुरा जिला में इस मंदिर का निर्माण हुआ। वृंदावन और राजस्थान वासियों के मन में इस मंदिर की बहुत मान्यता है। यह भी मथुरा का महत्वपूर्ण मंदिर है। यहाँ भक्ति-भाव के संगीतों से माहौल आध्यात्मिक बना रहता है। आप यहाँ आकर बहुत शांताप्रिय वातावरण पाऐंगे। मथुरा आकर आपको कुछ समय इस मंदिर को भी देना चाहिए।
मदन मोहन मंदिर — Madan Mohan Temple

मथुरा में प्रसिद्ध मंदिर विशाल भूमि क्षेत्र में बने हैं। वृन्दावन के सबसे पुराने मंदिर के रूप में जाना जाने वाला यह मंदिर बड़े पैमाने पर भगवान कृष्ण की पूजा के लिए समर्पित है। मथुरा और वृन्दावन के अधिकांश मंदिरों में भगवान कृष्ण की मूर्ति विराजमान है। यह 18.288 मीटर ऊंचा मंदिर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है ताकि पर्यटकों के लिए यह आसानी से दिखाई दे सके। इसमें एक अलग तरह की पवित्रता और आकर्षण है, यही वजह है कि लोग इस अंडाकार संरचना की ओर सबसे ज्यादा आकर्षित होते हैं।
यम यमुना मंदिर — Yama Yamuna Temple

यम यमुना मंदिर, जिसे यमुना-धर्मराज मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, मथुरा में विश्राम घाट के पास स्थित है। मंदिर के बाहरी हिस्से में एक आरामदायक दरवाजे के साथ चांदी की परतें लगी हुई हैं, जिसमें आप केवल थोड़ा झुककर ही प्रवेश कर सकते हैं। मंदिर के आंतरिक भाग बहुत ही साधारण हैं जहाँ इष्टदेव यम और यमुना हैं। काले पत्थर से बने देवता कमरे के मध्य में खड़े हैं और लगभग 4900 वर्ष पुराने माने जाते हैं।
केशव देव मंदिर — Keshav Dev Temple

केशव देव मंदिर मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर के पीछे की भूमि पर स्थित है। यह महत्वपूर्ण ऐतिहासिक महत्व रखता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यही वह भूमि है जहां भगवान कृष्ण को बंदी बनाकर रखा गया था। बाद में, उस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण किया गया, जिसका पूरे इतिहास में कई बार पुनर्निर्माण किया गया। भगवान कृष्ण को समर्पित यह मंदिर विशेष रूप से जन्माष्टमी के दौरान तीर्थयात्रियों से भरा रहता है।
आदि वराह मंदिर — Adi Varaha Temple

मथुरा में प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर के पास स्थित, श्री आदि वराह मंदिर शहर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक होने की प्रतिष्ठा रखता है। जो तथ्य इस मंदिर को अद्वितीय और दूसरों से अलग बनाता है, वह यह है कि इसके इष्टदेव यानी श्री आदि वराह का रंग लाल है और उन्हें ‘लाल वराह’ कहा जाता है। मंदिर सुबह 6:30 बजे से 10:30 बजे तक खुलता है। और फिर शाम 4:00 बजे से शाम 7:00 बजे तक (गर्मी में), या 3:30 बजे से शाम 6:30 बजे तक (सर्दियों में)।
जुगल किशोर जी मंदिर — Jugal Kishore Ji Temple

जुगल किशोर जी मंदिर मथुरा में केशी घाट के पास स्थित है और इसलिए इसे केशी घाट मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। शहर के चार सबसे पुराने मंदिरों में से एक माने जाने वाले इस मंदिर का निर्माण 1727 ई. में किया गया था। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित, यह मंदिर एक भव्य स्थापत्य शैली का दावा करता है और इसके मूल देवता जुगल किशोर जी हैं।