उत्तर प्रदेश के रायबरेली में स्थित पवित्र गंगा तट पर बसा डलमऊ किला एक समृद्ध इतिहास का गवाह है। यदुवंशी राजा डालदेव की राजधानी रहे इस नगर में महर्षि दालभ्य ऋषि ने साधना कर भारतीय संस्कृति का प्रसार किया। यहीं पर मुल्ला दाऊद ने सूफी काव्य धारा को जन्म दिया, जिनकी परंपरा में मलिक मुहम्मद जायसी जैसे महान कवि हुए।
नदीय व्यापार के समय डलमऊ एक समृद्ध व्यापारिक केंद्र था। मुल्ला दाऊद ने अपनी रचना ‘चांदायन’ में इस नगर का मनोहारी वर्णन किया है। साहित्य, संगीत, कला और संस्कृति का यह महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। यहां का राधा कृष्ण मठ, जो पहले बौद्ध विहार था, आज भी गंगा के पूर्वी तट पर स्थित है। संवत 1184 में अयोध्या से आए संन्यासी राघवेन्द्र नाथ पौहारी ने यहां शैव धर्म की स्थापना की।
वर्तमान में पुरातत्व विभाग के अधीन यह किला अपनी दुर्दशा का साक्षी बना हुआ है। किले के खंडहर, प्राचीन मूर्तियां, शिलालेख और अवशेष इसकी ऐतिहासिक महत्ता को दर्शाते हैं। सोलहवीं शताब्दी में पानीपत के युद्ध के बाद, जब इब्राहीम लोदी की मृत्यु हुई और सूर वंश का पतन हुआ, तब कुंवर मोहन दास दिल्ली से डलमऊ आए और मुगल शासन संभाला। आज भी जन-जन की स्मृतियों में इस नगर की महिमा जीवंत है।