Hathras gang : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वर्ष 2020 में हाथरस सामूहिक दुष्कर्म और हत्या मामले में आधिकारिक कर्तव्यों में लापरवाही बरतने के आरोप में निलंबित स्टेशन हाउस अधिकारी (एसएचओ) के आचरण की आलोचना करते हुए कहा कि जांच में सामने आए सभी तथ्य न केवल संबंधित अधिकारी में संवेदनशीलता की कमी को दर्शाते हैं, बल्कि उसके द्वारा की गई आधिकारिक कर्तव्यों की उपेक्षा को भी सिद्ध करते हैं।
सामूहिक दुष्कर्म की शिकार 19 वर्षीय दलित महिला के मामले को असंवेदनशीलता से संभालने के कारण संबंधित एसएचओ के खिलाफ सीबीआई द्वारा आईपीसी की धारा 166 और 167 के तहत आरोप पत्र दाखिल किया गया, जिसमें बताया गया कि याची मीडिया को पीड़िता के पास जाने और थाने के अंदर उसकी तस्वीरें और वीडियो लेने से रोकने में विफल रहा, जबकि यौन उत्पीड़न की शिकार पीड़िता की गरिमा की रक्षा करना उसका कर्तव्य था। इसके अलावा जब पीड़िता को पुलिस स्टेशन लाया गया, तो याची ने अपने मोबाइल पर उसका वीडियो रिकॉर्ड कर लिया, लेकिन उसने उसे यौन उत्पीड़न जांच के लिए रेफर नहीं किया।
इसके साथ ही उन्होंने गंभीर रूप से घायल पीड़िता को पुलिस वाहन या एम्बुलेंस के माध्यम से अस्पताल भेजने के बजाय उसके परिवार को साझा ऑटो-रिक्शा की व्यवस्था करने के लिए मजबूर किया। सीबीआई द्वारा यह भी आरोप लगाया गया कि अधिकारी के कहने पर जनरल डायरी में गलत प्रविष्टियां भी की गईं, साथ ही पीड़िता द्वारा यौन उत्पीड़न का दावा करने पर भी वह उसका बयान दर्ज करने में असफल रहा। सीबीआई द्वारा लगाए गए आरोपों को चुनौती देते हुए संबंधित अधिकारी ने हाईकोर्ट के समक्ष वर्तमान याचिका दाखिल की, जिस पर विचार करते हुए कोर्ट ने एसएचओ द्वारा मामले को संभालने में की गई दो विशिष्ट चूकों की पहचान की और स्पष्ट किया कि याची द्वारा अपने मोबाइल में तैयार किए गए पीड़िता के वीडियो से यह स्पष्ट था कि वह पीड़िता की पहचान की रक्षा करने में विफल रहा, जिससे गृह मंत्रालय के एसओपी का उल्लंघन हुआ, साथ ही कोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य पर लागू पुलिस अधिनियम की धारा 44 पर जोर दिया, जिसमें यह प्रावधान है कि प्रत्येक पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी का यह कर्तव्य है कि वह एक सामान्य डायरी रखे और उसमें सही प्रविष्टियां करें, जबकि वर्तमान मामले में पीड़िता की मेडिकल जांच के लिए एक महिला कांस्टेबल भेजने तथा पीड़िता के शरीर पर कोई चोट ना होने के तथ्यों की गलत प्रविष्टि की गई थी।
अंत में न्यायमूर्ति राजवीर सिंह की एकलपीठ ने हाथरस के एसएचओ दिनेश कुमार वर्मा की असंवेदनशीलता की कड़ी निंदा कर मामले में लघु-परीक्षण की आवश्यकता से इनकार करते हुए याचिका खारिज कर दी। मामले के तथ्यों के अनुसार वर्ष 2020 में हाथरस में सामूहिक दुष्कर्म की शिकार 19 वर्षीय दलित लड़की के दाह-संस्कार मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट ने सुनवाई शुरू की थी, जिसमें आरोप था कि पीड़िता के परिवारीजनों की इच्छा के विरुद्ध पुलिस द्वारा गुप्त रूप से पीड़िता का दाह-संस्कार कर दिया गया था।