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kabir das ji ka jivan parichay ! कबीर दास जी का जीवन परिचय

कबीर दास जी का जीवन परिचय

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कबीर दास जी का जीवन परिचय

जन्म और प्रारंभिक जीवन:
कबीर दास (लगभग 1440–1518 ई.) भक्ति काल के महान संत, कवि, और समाज सुधारक थे। उनका जन्म वाराणसी में हुआ माना जाता है। उनके जन्म को लेकर विवाद है: एक मान्यता के अनुसार, वे एक ब्राह्मण विधवा के पुत्र थे, जिन्हें जन्म के बाद एक मुस्लिम जुलाहा परिवार (नीरू और नीमा) ने गोद लिया। यही कारण है कि उनके विचारों में हिंदू-मुस्लिम एकता की झलक मिलती है।

आध्यात्मिक यात्रा:
कबीर ने रामानंद को अपना गुरु माना, हालाँकि इस बात पर भी चर्चा है। कहा जाता है कि वे रामानंद के शिष्य बनने के लिए जिद्दी रहे और अंततः उन्हें दीक्षा मिली। उन्होंने निर्गुण भक्ति (निराकार ईश्वर की उपासना) का प्रचार किया और मूर्तिपूजा, जाति व्यवस्था, धार्मिक आडंबरों का विरोध किया। उनकी शिक्षाएँ हिंदू और इस्लाम दोनों से प्रभावित थीं, पर कर्मकांडों से मुक्त।

विचारधारा और शिक्षाएँ:

  1. एकेश्वरवाद: “अल्लाह-राम” एक ही हैं, नामों का भेद व्यर्थ है।
  2. सामाजिक समानता: जाति-धर्म के भेद को झूठा बताया। उनका प्रसिद्ध दोहा:
    “जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।”
  3. आडंबर विरोध: मंदिर-मस्जिद और पूजा-रिवाजों की खिल्ली उड़ाई।
    “पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।”
  4. आत्मनिरीक्षण: मन की शुद्धि पर जोर:
    “माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय। एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोय।”

पारिवारिक जीवन:
उनकी पत्नी लोई और दो बच्चे कमाल व कमाली थे। गृहस्थ होकर भी उन्होंने आध्यात्मिक जीवन का उदाहरण प्रस्तुत किया।

साहित्यिक योगदान:
कबीर की रचनाएँ दोहों, साखियों, और शबदों के रूप में हैं, जो बीजक, साखी ग्रंथ, और कबीर ग्रंथावली में संकलित हैं। उनकी भाषा सरल अवधी, ब्रज, और खड़ी बोली का मिश्रण है, जो आम जनता तक पहुँचने का साधन बनी। उनके दोहे आज भी लोकप्रिय हैं:
“बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।”

मृत्यु और विरासत:
मृत्यु के बाद हिंदू-मुस्लिम अनुयायियों में उनके अंतिम संस्कार को लेकर विवाद हुआ। किंवदंती है कि उनके शव के स्थान पर फूल मिले, जिन्हें दोनों समुदायों ने बाँट लिया। यह घटना उनकी सार्वभौमिक शिक्षाओं का प्रतीक बनी।

प्रभाव:
कबीर पंथ उनके अनुयायियों का प्रमुख संप्रदाय है। सिख धर्म के गुरु ग्रंथ साहिब में भी उनके 200 से अधिक पद शामिल हैं। आज भी उनके दोहे नैतिक शिक्षा और सामाजिक सद्भाव का संदेश देते हैं।

निष्कर्ष:
कबीर दास ने भक्ति के माध्यम से मानवता, सादगी, और आंतरिक धर्म का संदेश दिया। उनकी विरासत धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक न्याय की प्रेरणा बनी हुई है।

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