Home उत्तर प्रदेश कबीरदास का जीवन परिचय एवं साहित्यिक योगदान

कबीरदास का जीवन परिचय एवं साहित्यिक योगदान

कबीरदास (लगभग 1398–1448 या 1440–1518) के जन्म के बारे में अनेक किंवदंतियाँ हैं। मान्यता है कि उनका जन्म एक ब्राह्मण विधवा के गर्भ से हुआ, जिन्होंने लोक-लाज के भय से उन्हें लहरतारा तालाब (वाराणसी) के पास छोड़ दिया।

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कबीरदास का जीवन परिचय एवं साहित्यिक योगदान


जीवन परिचय:

  1. जन्म एवं प्रारंभिक जीवन:
    कबीरदास (लगभग 1398–1448 या 1440–1518) के जन्म के बारे में अनेक किंवदंतियाँ हैं। मान्यता है कि उनका जन्म एक ब्राह्मण विधवा के गर्भ से हुआ, जिन्होंने लोक-लाज के भय से उन्हें लहरतारा तालाब (वाराणसी) के पास छोड़ दिया। वहाँ से नीरू और नीमा नामक मुस्लिम जुलाहे दंपति ने उन्हें पाला। इस प्रकार, कबीर ने हिंदू-मुस्लिम संस्कृतियों के संगम में जीवन आरंभ किया।
  2. आध्यात्मिक शिक्षा:
    कबीर ने रामानंद को अपना गुरु बनाने के लिए एक चालाकी की। वे गंगा घाट की सीढ़ियों पर लेट गए, जहाँ रामानंद का पैर उन पर पड़ा और वे “राम-राम” बोल उठे। कबीर ने इसे दीक्षा मान ली। यह घटना उनके आध्यात्मिक जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ थी।
  3. समाजिक पहचान:
    कबीर ने जुलाहे का काम करते हुए सामाजिक बंधनों को चुनौती दी। उन्होंने न तो हिंदू न ही मुस्लिम पहचान को स्वीकारा, बल्कि मानवता और आत्मिक एकता पर बल दिया।
  4. मृत्यु:
    किंवदंती है कि मृत्यु के बाद उनके शरीर के स्थान पर फूल मिले, जिसे हिंदू और मुसलमानों ने आपस में बाँट लिया। यह घटना उनके सार्वभौमिक संदेश का प्रतीक बनी।

साहित्यिक योगदान:

  1. रचनाएँ:
    कबीर की रचनाएँ मौखिक परंपरा में प्रचलित रहीं, जिन्हें बाद में संकलित किया गया। प्रमुख संग्रह हैं:

    • बीजक: इसमें दोहे, साखी और रमैनी शामिल हैं। यह कबीरपंथियों का मुख्य ग्रंथ है।
    • साखी ग्रंथ: इसमें नीति और आध्यात्मिक सूक्तियाँ हैं।
    • अनुराग सागर: इसमें परमात्मा की खोज का रूपकात्मक वर्णन है।
  2. भाषा शैली:
    कबीर ने सधुक्कड़ी (ब्रज, अवधी और भोजपुरी का मिश्रण) भाषा का प्रयोग किया, जो जनसामान्य की भाषा थी। उनके दोहे सरल लेकिन गहन अर्थ वाले हैं, जैसे:

    • “माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय। एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय।”
  3. विषय-वस्तु:
    • सामाजिक समानता: जाति और धर्म के भेद को निरर्थक बताया।
    • आडंबर विरोध: मूर्ति पूजा, रोज़ा, नमाज़ जैसे रीति-रिवाजों की खिलाफत की।
    • आध्यात्मिक एकता: “राम”, “अल्लाह”, और “निर्गुण ब्रह्म” को एक ही सत्य बताया।
  4. दार्शनिक दृष्टि:
    कबीर निर्गुण भक्ति धारा के प्रमुख कवि थे, जो ईश्वर को निराकार मानते थे। उनका मानना था कि ईश्वर की प्राप्ति गुरु के मार्गदर्शन और आत्म-साक्षात्कार से होती है।

प्रभाव एवं विरासत:

  • सामाजिक सुधार: उन्होंने छुआछूत और धार्मिक कट्टरता के विरुद्ध आवाज़ उठाई।
  • साहित्यिक प्रेरणा: सिखों के गुरु ग्रंथ साहिब, रैदास, और नानक पर उनका प्रभाव दिखता है।
  • कबीरपंथ: उनके अनुयायियों ने “कबीरपंथ” सम्प्रदाय बनाया, जो आज भी सक्रिय है।
  • आधुनिक प्रासंगिकता: समकालीन समाज में उनके विचार सामाजिक न्याय और धार्मिक सहिष्णुता के लिए मार्गदर्शक हैं।

निष्कर्ष:

कबीरदास ने अपनी काव्यात्मक सरलता और दार्शनिक गहराई के माध्यम से समाज को आध्यात्मिक और सामाजिक क्रांति का संदेश दिया। उनकी रचनाएँ आज भी मानवीय मूल्यों और सार्वभौमिक सत्य की प्रतीक हैं।

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