Ram Mandir History in Hindi — The full story of the Ram temple being built, from 1528 till now
Ram Mandir History in Hindi : साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, राम मंदिर बनकर तैयार है और श्रीराम की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा होने जा रही है। इस मौके पर हम उस इतिहास के बारे में जान लेते हैं जिसने आज के राम मंदिर के स्वरूप की नींव रखी।
Ayodhya Ram Mandir History in Hindi: अयोध्या नगरी कितनी पुरानी है क्या आपको इसका अंदाजा है? भारतीय वेदों और शास्त्रों में भी अयोध्या का जिक्र मिलता है। अथर्ववेद में भी इस नगरी का साक्ष्य मिलता है। हमारी मान्यताओं में अयोध्या नगरी हमेशा से ही श्री राम की जन्मभूमि रही है। अयोध्या का धार्मिक इतिहास तो हमने रामायण में पढ़ा है, लेकिन इसके इतिहास का एक पन्ना विवादित भी है। हम बात कर रहे हैं बाबरी मस्जिद और इससे जुड़ी घटनाओं की। इस वक्त पूरा भारत श्रीराम की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर खुशियों में सराबोर है। ऐसे में क्यों ना इतिहास के गलियारों में एक बार घूम लिया जाए।
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आज हम उन तारीखों की बात करते हैं, जिन्होंने मौजूदा समय में राम मंदिर का स्वरूप निर्धारित करने में मदद की है। अधिकतर लोगों को लगता है कि यह विवाद 70 सालों से चला आ रहा है, लेकिन इसकी नींव असल में 16वीं सदी में ही रख दी गई थी। हालांकि, उससे पहले भी अयोध्या नगरी में मंदिर और मस्जिद के विवाद रहे हैं, लेकिन आधुनिक इतिहास को हम साल 1528 से ही देख सकते हैं।
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Babri Masjid was built between the years 1528–29
अयोध्या का विवाद बाबरी मस्जिद से घिरा हुआ है। इसकी शुरुआत हुई साल 1528 में जब बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद बनवाया। इस मस्जिद को मुगल काल की एक महत्वपूर्ण मस्जिद माना जाता था। वैसे बाबरी मस्जिद का मॉर्डन दस्तावेजों में भी जिक्र है, जैसे साल 1932 में छपी किताब ‘अयोध्या: ए हिस्ट्री’ में भी बताया गया है कि मीर बाकी को बाबर ने ही हुक्म दिया था कि अयोध्या में राम जन्मभूमि है और यहां के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण करवाना होगा।
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बाबर के सिपाही द्वारा बनाई गई इस मस्जिद का नाम बाबरी रख दिया गया। हालांकि, इसे लेकर अभी भी विवाद है कि बाबरी मस्जिद को मंदिर तोड़कर ही बनाया गया था, लेकिन कई किताबें इसका जिक्र जरूर करती हैं कि मंदिर की सामग्री से ही मस्जिद का निर्माण शुरू किया गया था। उस वक्त क्या हुआ था इसे लेकर कई दावे मिलते हैं।
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The controversy started 300 years later
मस्जिद के बनने के 300 साल बाद इसे लेकर विवाद की पहली झलक दिखाई दी। अब जो इतिहास शुरू होने वाला था वह लंबी लड़ाई के साथ-साथ विध्वंस की कहानी कहने वाला था।
1853 से 1855 के बीच में अयोध्या के मंदिरों को लेकर विवाद शुरू होने लगे। Indian history collective की रिपोर्ट बताती है कि उस वक्त सुन्नी मुसलमानों के एक गुट ने हनुमानगढ़ी मंदिर पर हमला कर दिया था। उनका दावा था कि यह मंदिर मस्जिद को तोड़कर बनाया गया है। हालांकि, इसका कोई भी साक्ष्य नहीं मिला।
सर्वपल्ली गोपाल की किताब ‘एनाटॉमी ऑफ अ कन्फ्रंटेशन: अयोध्या एंड द राइज ऑफ कम्युनल पॉलिटिक्स इन इंडिया’ में भी इसका जिक्र है। किताब में यह भी कहा गया है कि उस वक्त हनुमानगढ़ी मंदिर बैरागियों के अधीन था और उन्होंने आसानी से मुसलमानों के गुट को हटा दिया था। तत्कालीन नवाब वाजिद अली शाह से इसके बारे में शिकायत भी की गई। अयोध्या तब नवाबों के अधीन थी और इस मामले को सुलझाने के लिए कमेटी बनाई गई। उस कमेटी की जांच रिपोर्ट में सामने आया कि वहां कोई भी मस्जिद था ही नहीं। उस वक्त नवाब वाजिद अली शाह ने हनुमानगढ़ी मंदिर पर एक और हमला रोका था।
The British government tried to reconcile
एक रिपोर्ट कहती है कि साल 1858 में निहंग सिखों के एक दल ने बाबरी मस्जिद के अंदर घुसकर हवन-पूजन किया था। उस वक्त इस घटना के खिलाफ पहली बार एफआईआर की गई थी और लिखित में यह विवाद सामने आया था। उसमें लिखा गया था कि अयोध्या में मस्जिद की दीवारों पर राम का नाम लिख दिया गया है और उसके बगल में एक चबूतरा बना है।
साल 1859 में अंग्रेजी सरकार ने इसके बीच एक दीवार खड़ी कर दी, जिससे हिंदू पक्ष और मुस्लिम पक्ष शांति से अलग-अलग स्थान पर पूजा और इबादत कर सकें। यहीं से पहली बार राम चबूतरा शब्द प्रचलन में आया था।
Ram Lala reached the court for the first time in the year 1885 The Supreme Court Observer (SCO) report states that this was the first time the Ram Mandir dispute had reached the court।
यहां महंत रघुवीर दास ने राम चबूतरे पर मंदिर बनवाने की याचिका दायर की थी। फैजाबाद डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने यह याचिका खारिज कर दी थी, तब फैजाबाद कोर्ट में रघुवीर दास की याचिका गई थी। उस वक्त केस की सुनवाई कर रहे जज पंडित हरि किशन ने इस याचिका को रद्द कर दिया था।
उस वक्त पहली बार निर्मोही अखाड़ा सामने आया था और लोगों को उसके बारे में पता चला था। महंत रघुवीर दास उसी अखाड़े से थे।
इसके बाद भी रघुवीर दास ने हार नहीं मानी और अंग्रेजी सरकार के जज से गुहार लगाई, लेकिन यहां भी याचिका को खारिज कर दिया गया।
यह मामला यहीं दब गया और अगले 48 सालों तक मामला ठंडे बस्ते में रहा और छुट-फुट शांतिपूर्ण विरोध होते रहे।
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The period of the year 1930, when the new chapter of Ayodhya started
सबसे पहले साल 1936 में मुसलमानों के दो समुदाय शिया और सुन्नी की लड़ाई हुई। दोनों ही बाबरी मस्जिद पर अपना हक जता रहे थे। इसकी बात दोनों समुदायों के वक्फ बोर्ड तक पहुंची और दोनों की लड़ाई 10 साल तक खिंच गई। इस लड़ाई में जज द्वारा जो फैसला आया उसमें शिया समुदाय के दावों को खारिज कर दिया गया।
The politics of Ayodhya changed from the year 1947 onwards
मॉर्डन समय में जब भी अयोध्या की बात होती है, तो उसमें राजनीति शब्द जरूर सामने आता है। हालांकि, इसकी शुरुआत बंटवारे के बाद ही हुई। पाकिस्तान का वजूद बना और अयोध्या में अब हिंदू महासभा का हस्तक्षेप सामने आया।
कृष्णा झा और धीरेन्द्र के झा की किताब ‘अयोध्या- द डार्क नाइट’ सहित कई किताबें इस बारे में कहती हैं कि 1947 का अंत होते-होते हिंदू महासभा द्वारा एक मीटिंग रखी गई थी जिसमें बाबरी मस्जिद पर कब्जे की बात कही गई थी। इसके बाद के चुनावों में पहली बार कांग्रेस पार्टी ने राम मंदिर को मुद्दा बनाया था।
कांग्रेस के इस मुद्दे के बाद कोई और पार्टी कहीं टिक नहीं पाई और फैजाबाद में भी कांग्रेस जीत गई।
Statue of Ram Lala found in Babri Masjid in the year 1949
अब तक हालात काफी खराब हो चुके थे। गाहे-बगाहे खबरें आती रही कि हिंदू पक्ष ने बाबरी मस्जिद पर कब्जा कर लिया है, लेकिन तब तक ऐसा नहीं हुआ था। वहां के हालात को सुधारने के लिए कानूनी मदद ली गई, लेकिन साल 1949 की एक रात वहां राम मूर्ति मिलने का दावा किया गया।
इस घटना के बाद हालात इतने गंभीर हो गए कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संज्ञान लिया। महज 6 दिनों के अंदर ही बाबरी मस्जिद पर ताला लगा दिया गया। उस वक्त हिंदू पक्ष ने दावा किया था कि राम लला की मूर्ति अपने- आप वहां प्रकट हुई है, लेकिन इस दावे को खारिज कर दिया गया।
The case was done once again in the year 1950
दो अलग-अलग केस फैजाबाद कोर्ट में दाखिल किए गए और हिंदू पक्ष ने रामलला की पूजा की आज्ञा मांगी। हालांकि, कोर्ट ने इजाजत तो दे दी, लेकिन अंदरूनी गेट को बंद ही रखा गया।
साल 1959 में निर्मोही अखाड़े ने एक तीसरा लॉ सूट फाइल किया, जिसमें उन्होंने बाबरी मस्जिद की जमीन पर अधिकार मांगा। ऐसे ही साल 1961 में मुस्लिम पक्ष ने एक केस फाइल किया जिसमें यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा कि उन्हें बाबरी मस्जिद ढांचे पर हक चाहिए और राम की मूर्तियों को यहां से हटा दिया जाना चाहिए।
Ram Janmabhoomi dispute heated up once again since the year 1984
इस समय अयोध्या ने अपना सबसे बड़ा राजनीतिक दौर देखा। यह वक्त था, जब राम मंदिर आंदोलन की शुरुआत हुई थी। इसी समय बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी को इस आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए चुना गया था।
साल 1986 में राजीव गांधी सरकार के आदेश पर बाबरी मस्जिद के अंदर का गेट खोला गया। दरअसल, उस वक्त लॉयर यूसी पांडे ने फैजाबाद सेशन कोर्ट में याचिका दायर की थी कि फैजाबाद सिटी एडमिनिस्ट्रेशन ने इसका गेट बंद करने का फैसला सुनाया था, इसलिए इसे खोला जाना चाहिए। तब हिंदू पक्ष को यहां पूजा और दर्शन की अनुमति भी दे दी गई और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने इसके खिलाफ प्रोटेस्ट भी किया।
The foundation stone of Ram temple was laid in the year 1989
उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने विश्व हिंदू परिषद को विवादित जगह पर शिलान्यास करने की अनुमति दे दी थी। इसके बाद, पहली बार रामलला का नाम इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचा था, जिसमें निर्मोही अखाड़ा (1959) और सुन्नी वक्फ बोर्ड (1961) ने रामलला जन्मभूमि पर अपना दावा पेश किया। साल 1990 में लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ मंदिर से लेकर अयोध्या तक रथ यात्रा की शुरुआत की। यह बहुत ही विवादित दौर था।
The people of Ayodhya told that they saw the eyes of that time
हमने दिल्ली यूनिवर्सिटी के पॉलिटिकल साइंस प्रोफेसर और अयोध्या के निवासी शिवपूजन पाठक से बात की। उन्होंने हमें बताया, “उस दौरान अयोध्या वासियों के ऊपर ही कारसेवकों के लिए व्यवस्था का कार्यभार था। चारों तरफ पुलिस तैनात रहती थी और रातों- रात कार सेवकों को रहने के लिए जगह दी जाती थी। स्कूलों में भी उन्हें रुकवाया गया था। उस वक्त चारों तरफ सिर्फ परेशानी का माहौल रहता था और समझ नहीं आता था कि आने वाले पल में क्या हो जाएगा।”
Babri Masjid demolished in the year 1992
6 दिसंबर 1992 का वो दिन जब बाबरी मस्जिद को गिराया गया था। भारत के इतिहास में यह दिन दर्ज है। कारसेवकों ने यहां एक अस्थाई मंदिर की स्थापना भी कर दी थी।
मस्जिद गिराने के 10 दिन बाद प्रधानमंत्री ने रिटायर्ड हाई कोर्ट जस्टिस एम.एस. लिब्रहान को लेकर एक कमेटी बनाई, जिसमें मस्जिद को गिराने और सांप्रदायिक दंगों को लेकर एक रिपोर्ट बनानी थी।
जनवरी 1993 आते-आते अयोध्या की जमीन को नरसिम्हा राव की सरकार ने अपने अधीन ले लिया और 67.7 एकड़ जमीन को केंद्र सरकार की जमीन घोषित कर दिया गया।
साल 1994 में इस्माइल फारूकी जजमेंट आया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट SC ने 3:2 के बहुमत से अयोध्या में कुछ क्षेत्रों के अधिग्रहण अधिनियम की संवैधानिकता को बरकरार रखा। इस जजमेंट में यह भी कहा गया था कि कोई भी धार्मिक जगह सरकारी हो सकती है।
The demand for Ram temple started increasing in the year 2002
अप्रैल 2002 में अयोध्या टाइटल डिस्प्यूट शुरू हुआ और इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में हियरिंग शुरू हुई। अगस्त 2003 में ASI (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) ने मस्जिद वाली जगह पर खुदाई शुरू की और यह दावा किया कि इसके नीचे 10वीं सदी के मंदिर के साक्ष्य मिले हैं। साल 2009 में अपने गठन के 17 सालों बाद लिब्राहन कमीशन ने रिपोर्ट सबमिट की। हालांकि, इस रिपोर्ट में क्या था वह सामने नहीं आया।
Historic verdict of 30 September 2010 Ayodhya case
अब तक अयोध्या की जमीन को हर पक्ष अपने लिए मांग रहा था, लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस जमीन को तीन हिस्सों में बांट दिया। इसके तहत 1/3 हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को, 1/3 हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को और 1/3 हिस्सा राम लला विराजमान को दिया गया।
इस फैसले ने पूरे देश में विवादों को जन्म दिया। इसके खिलाफ एक बार फिर से याचिका दायर हुई और साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की रूलिंग को रोक दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस हियरिंग को लेकर कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट का जजमेंट अजीब है, क्योंकि तीनों में से किसी भी पार्टी ने इसके लिए गुहार नहीं लगाई थी।
साल 2017 आते-आते चीफ जस्टिस खेहर ने तीनों पार्टियों को आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट के बारे में कहा। इसपर एक बार फिर से बहस शुरू हुई।
साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला दिया। हालांकि, तो लेकिन उसे जगजाहिर नहीं किया गया। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बेंच के तहत उनके फैसले की जांच करने को मना कर दिया था।
The historic decision finally arrived in the year 2019
चीफ जस्टिस गोगोई ने साल 2019 में 5 जजों की बेंच बनाई और पुराने 2018 वाले फैसले को खारिज कर दिया। 8 मार्च 2019 को दो दिन की सुनवाई के बाद जमीनी विवाद को आपसी सहमति से सुलझाने की बात एक बार फिर से कही गई। नवंबर 2019 आते-आते सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू पक्ष के हित में फैसला सुनाया और राम मंदिर को एक ट्रस्ट के जरिए बनवाने का आदेश दिया। इसके साथ सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन दी गई, जहां अयोध्या में मस्जिद बनवाया जाना था। दिसंबर तक इस मुद्दे पर कई पिटीशन फाइल की गई और सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को खारिज कर दिया। फरवरी 2020 को श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की स्थापना हुई। लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी घोषणा की। सुन्नी वक्फ बोर्ड ने 5 एकड़ जमीन को स्वीकार किया और अगस्त 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर का शिलान्यास किया।
Construction of Ram temple started in the year 2020
आधिकारिक रूप से शुरू हो गया। 5 फरवरी 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाया गया। अगस्त 2020 में राम मंदिर की आधारशिला रखी गई।
Ram temple was inaugurated in the year 2023
आखिरकार, 22 जनवरी 2024 आ गया और इस दिन राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा भी हो गई। अब यह मंदिर आम लोगों के लिए खोल दिया जाएगा और अयोध्या में आकर लोग श्री राम के बाल रूप के दर्शन कर पाएंगे। अब 22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ही रामलला की मूर्ति का प्राण-प्रतिष्ठा किया जाना है।
Hanuman Garhi Ayodhya had donated 52 bighas of land for Hanuman ji
रामलला की स्थापना के साथ उनके परम प्रिय दूत बजरंगबली की प्रधानतम पीठ हनुमानगढ़ी का भी मान बढ़ गया। पौराणिक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद श्रीराम के साथ अनेक वानर वीर भी श्रीराम के साथ अयोध्या आए। इनमें स्वाभाविक रूप से हनुमान जी भी शामिल थे। माता सीता की खोज से लेकर रावण के विरुद्ध सामरिक अभियान में हनुमान जी ने अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनकी इसी योग्यता के अनुरूप श्रीराम ने राजप्रासाद के आग्नेय कोण पर हनुमान जी को अयोध्या के रक्षक के रूप में स्थापित किया।
Formation of three arrondissements in the latter half of the 17th century
यह भी मान्यता है कि अजर-अमर के वरदान से युक्त हनुमान जी आज भी यहां सूक्ष्म रूप से विद्यमान हैं। एक मार्च 1528 को राम मंदिर तोड़े जाने जैसी घटनाओं के चलते घर-परिवार त्याग कर राम भक्ति में लीन रहने वाले विरक्त वैष्णव आचार्यों ने 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जिन तीन अखाड़ों का गठन किया, उनमें से एक निर्वाणी अखाड़ा भी था। हनुमानगढ़ी इस अखाड़ा के विरक्त साधुओं के केंद्र के रूप में स्थापित हुई।
The saints of Hanumangarhi launched the campaign to liberate Ramjanmabhoomi
पुजारी रमेशदास के अनुसार, इस निर्णय के पीछे हनुमान जी से भक्ति, वैराग्य, बल-विक्रम और रामकाज की प्रेरणा भी थी। ऐसी ही प्रेरणा और विरासत से प्रवाहमान हनुमानगढ़ी के संतों ने रामजन्मभूमि की मुक्ति का अभियान आगे बढ़ाया। यदि एक ओर इस पीठ की आध्यात्मिक विरासत अवध के नवाब मंसूर अली खां से प्रतिपादित है, दूसरी ओर महंत अभिरामदास से भी अनुप्राणित है।
The Nawab had built a grand temple
18वीं शताब्दी के प्रारंभिक काल में नवाब पुत्र की असाध्य बीमारी से क्लांत कातर हो यहां विराजमान बजरंगबली के अर्चक बाबा अभयरामदास के आशीर्वाद से यदि नवाब के पुत्र को असाध्य बीमारी से मुक्ति मिली, तो बदले में नवाब ने हनुमान जी का भव्य मंदिर निर्मित कराया और हनुमान जी के लिए 52 बीघा का परिसर दान कर दिया। हनुमानगढ़ी मुस्लिमों की भी आस्था के केंद्र में रही, किंतु जब भी रामजन्मभूमि मुक्ति के प्रति न्याय की बारी आई हनुमानगढ़ी हनुमानजी की विरासत के अनुरूप डटी मिली।
22–23 दिसंबर 1949 की रात जिस महंत के पराक्रम से रामजन्मभूमि पर प्रकटे रामलला को हटाया नहीं जा सका, वह यहीं से जुड़े महंत अभिरामदास थे। कालांतर में उन्हीं के शिष्य महंत धर्मदास एवं यहीं से जुड़े एक अन्य शीर्ष महंत ज्ञानदास रामजन्मभूमि मुक्ति के लिए अपने-अपने स्तर से प्रयासरत रहे। आज जब रामजन्मभूमि पर सदियों बाद भव्य मंदिर निर्माण और उसमें रामलला की स्थापना का चिर स्वप्न साकार हो रहा है, तब हनुमानगढ़ी भी फूली नहीं समा रही है।
बजरंगबली का श्रृंगार
राम मंदिर निर्माण के साथ न केवल हनुमानगढ़ी के नवीनीकरण का प्रयास चल रहा है, समय-समय पर इस पीठ का उल्लास भी प्रस्फुटित होता है। रामलला की स्थापना के उत्सव में सोमवार के दिन बजरंगबली का श्रृंगार उनके प्रिय दिन मंगलवार की व्यवस्था के हिसाब से किया गया। उन्हें स्वर्ण छत्र, स्वर्ण मुकुट-कुंडल से सज्जित किया गया। जबकि गर्भगृह सहित हनुमानगढ़ी का संपूर्ण आंतरिक प्रांगण भांति-भांति के पुष्पों से सुशोभित रहा।
कनकभवन में विराजे कनकबिहारी के दर्शन का विधान
बजरंगबली का दरबार उन विशिष्ट जनों की श्रद्धा से भी सज्जित हुआ, जो रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होकर लौट रहे थे। यद्यपि सोमवार को अति प्रतिष्ठापरक समारोह में शामिल होने की आपाधापी अपवाद सिद्ध हुई, नहीं तो पहले हनुमान जी के दर्शन और उसके बाद उनके आराध्य रामलला अथवा कनकभवन में विराजे कनकबिहारी के दर्शन का विधान है। इस समीकरण के चलते रामलला के दर्शनार्थियों में दो से तीन गुणा वृद्धि के साथ हनुमान जी के दर्शनार्थियों में भी अपूर्व वृद्धि हुई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी सोमवार को राम मंदिर में भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अपने संबोधन में हनुमानगढ़ी को प्रणाम किया।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या को भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में बसे हिंदुओं के लिए पवित्रतम तीर्थ माना जाता है। पुण्यदायिनी सरयू नदी की गोद में स्थित अयोध्या में कई ऐसे मंदिर हैं जो भक्तों को भगवान राम और उनके रामराज्य की अनुभूति कराते हैं। अयोध्या के इन्हीं मंदिरों में से एक है ‘कनक भवन’ जो स्वर्णमयी सुंदरता से परिपूर्ण है। इस मंदिर की विशेषता है कि इसकी संरचना जो एक विशाल महल की तरह है। कहा जाता है कि यह मंदिर एक महल ही था जिसे महाराज दशरथ ने अपनी पत्नी रानी कैकेयी के कहने पर देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा जी से बनवाया था।
त्रेता और द्वापर, दोनों युगों में सुशोभित रहा
माता सीता के साथ विवाह के बाद भगवान राम के मन में विचार आया कि मिथिला से महाराज जनक के वैभव को छोड़कर आने वाली सीता के लिए अयोध्या में भी एक दिव्य महल होना चाहिए। भगवान राम के मन में यह विचार आते ही अयोध्या में रानी कैकेयी के स्वप्न में एक स्वर्णिम महल दिखाई दिया। इसके बाद रानी कैकेयी ने महाराज दशरथ से अपने स्वप्न के अनुसार एक सुंदर महल बनवाने की इच्छा जाहिर की। रानी कैकेयी की इच्छा के बाद महाराज दशरथ ने देवशिल्पी विश्वकर्मा जी को बुलाकर रानी कैकेयी के कहे अनुसार एक सुंदर महल का निर्माण करवाया। जब माता सीता अयोध्या आईं तब रानी कैकेयी ने उन्हें यह महल मुँह दिखाई में दे दिया था।
द्वापरयुग में भी श्रीकृष्ण अपनी पत्नी रुक्मिणी के साथ अयोध्या आए थे। योध्या दर्शन के दौरान जब श्रीकृष्ण कनक भवन पहुँचे तब वहाँ उन्होंने इस भवन की जर्जर हालत देखी। अपनी दिव्य दृष्टि से श्रीकृष्ण ने यह क्षणभर में जान लिया कि यह स्थान कनक भवन है और उन्होंने अपने योगबल से श्रीसीताराम की मूर्तियों को प्रकट कर उसी स्थान पर स्थापित किया।
अनेकों बार हो चुका है जीर्णोद्धार
कनक भवन प्रांगण में स्थापित शिलालेख में समय-समय पर इसके जीर्णोद्धार की जानकारियाँ वर्णित हैं। सबसे पहले श्रीराम के पुत्र कुश ने इस महल का जीर्णोद्धार करवाया और श्रीराम-माता सीता की अनुपम मूर्तियाँ स्थापित करवाईं। इसके बाद श्रीकृष्ण ने इस महल का पुनर्निर्माण कराया।
आधुनिक भारत के इतिहास में 2000 साल पहले चक्रवर्ती सम्राट महाराजा विक्रमादित्य और समुद्रगुप्त द्वारा भी कनक महल के जीर्णोद्धार की जानकारी मिलती है। वर्तमान में महल का जो स्वरूप है वह 1891 में ओरछा के राजा सवाई महेंद्र प्रताप सिंह की पत्नी महारानी वृषभानु का निर्मित कराया हुआ है।
मंदिर के गर्भगृह में भगवान राम, माता सीता, अनुजों लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न सहित विराजमान हैं। भगवान राम और माता सीता ने स्वर्ण मुकुट पहन रखे हैं। मंदिर की विशेषता है कि यह मंदिर आज भी एक विशाल और अति सुंदर महल के समान प्रतीत होता है। मंदिर का विशाल आँगन इसकी सुंदरता को और भी बढ़ा देता है। मंदिर का एक-एक कोना वैभव और संपन्नता की कहानी कहता है।
श्रीराम-जानकी के महल में विचरण की मान्यता
आज भी साधु-संत और श्रीराम के अनन्य भक्त यह विश्वास करते हैं कि महल में भगवान श्रीराम और माता सीता विचरण करते हैं। इसी विश्वास के कारण भगवान राम से जुड़ा यह मंदिर रामभक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। कहा जाता है कि मंदिर के प्रांगण में बैठे रहने पर किसी प्रकार की कोई चिंता मन में नहीं रह जाती है और व्यक्ति अपने सभी दुखों को भूलकर मात्र श्रीराम के चरणों में खो जाता है।
मणि पर्वत का इतिहास Mani Parvat Ayodhya History in Hindi

मणि पर्वत का इतिहास बेहद ही रोचक और दिलचस्प है। राम नगरी अयोध्या में स्थित इस पर्वत के बारे में बोला जाता है कि भगवान राम की विवाह के बाद उपहार में बहुत अधिक मात्रा में मणियां मिली थी। कहा जाता है कि उस समय इतनी अधिक मणियां मिली थी कि मणियों का एक पहाड़ बन गया। इसके बाद इस जगह को मणि पर्वत के नाम से बुलाने जाने लगा।

मणि पर्वत की पौराणिक कथा बेहद ही रोचक है। इस पवित्र पर्वत के बारे में कहा जाता है कि इस पर्वत की कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। आइए जानते हैं इन पौराणिक कथाओं के बारे में-
मणि पर्वत की पहली पौराणिक कथा-
मणि पर्वत की पहली पौराणिक कथा भगवान राम और माथा सीता से जुड़ी हुई है। मान्यता के अनुसार इस पर्वत पर भगवान राम और माता सीता झूला झूलते थे। मान्यता है कि भगवान राम और माता सीता सुबह और श्रावण मास के समय यहां झूला झूलने के लिए आते थे। (अयोध्या के आसपास स्थित हिल स्टेशन)
मणि पर्वत की दूसरी पौराणिक कथा-

मणि पर्वत की दूसरी पौराणिक कथा बेहद ही रोचक है। मान्यता के अनुसार यह कहा जाता है कि जब हनुमान जी संजीवनी बूटी पहाड़ लौट रहते थे, तब भरत जी ने शत्रु समझकर वार कर दिया था।
भरत जी के वार से हनुमान जी और पहाड़ नीचे गिर गया, लेकिन जब फिर से हनुमान जी संजीवनी पहाड़ लेकर उड़े तो पहाड़ का एक हिस्सा टूटकर अयोध्या में गिर गया, जिसे कई लोग मणि पर्वत के नाम से जानने लगे।
Mani Parvat Ayodhya History in Hindi
भक्तों की खूब लगती हैं भीड़
मणि पर्वत की तीसरी पौराणिक कथा पहली और दूसरी से भी अधिक दिलचस्प है। कहा जाता है कि भगवान बुद्ध अयोध्या नगरी में करीब 6 साल समय गुजारा था। लोक मान्यता के अनुसार भगवान बुद्ध ने मणि पर्वत पर ही अपने शिष्यों को धम्म का ज्ञान दिया था। कहा जाता है कि इस पर्वत पर एक स्तूप के अलावा प्राचीन बौद्ध मठ भी स्थापित है।

Nageshwarnath Temple Ayodhya History In Hindi
शिव भगवन को समर्पित यह मंदिर राम की पैड़ी में स्थित है| ऐसी मान्यता है कि इसका निर्माण श्री राम के छोटे पुत्र कुश ने करवाया था| कहा जाता है कि एक बार सरयू में स्नान करते समय कुश ने अपना बाजूबंद खो दिया था जो एक नाग कन्या द्वारा वापस किया गया| नाग कन्या कुश पर मोहित हो गयी, चूँकि वह शिवभक्त थी अतः कुश ने इस मंदिर का निर्माण उस नाग कन्या के लिए करवाया था| यह मंदिर राजा विक्रमादित्य के शासन काल तक अच्छी स्थित में था| 1750 में इसका जीर्णोधार नवाब सफ़दरजंग के मंत्री नवल राय द्वारा कराया गया था| शिवरात्रि का पर्व इस मंदिर में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, यहाँ शिव बारात का भी बड़ा महात्म्य है| शिवरात्रि के पर्व में यहाँ लाखों की संख्या में दर्शनार्थी एवं श्रद्धालु उपस्थित होते हैं|

History of Dashrath Mahal Ayodhya : अयोध्या श्रीराम के जन्म, कर्म एवं लीलाओं की स्थली है। अयोध्या के दशरथ महल की महिमा भी अनूठी है। ऐसी मान्यता है कि इस महल का निर्माण स्वयं चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ ने करवाया था। दशरथ महल के महंत बिंदु गद्याचार्य देवेन्द्रप्रसादाचार्य ने वेबदुनिया से बात करते हुए कहा कि चक्रवर्ती महराज दशरथ का राजमहल एक ऐतिहासिक, धार्मिक व पौराणिक पीठ है, जिसको स्वयं महाराज दशरथ ने निर्माण कराया था। दशरथ जी अयोध्या के राजा थे। इसीलिए उनका महल भी अयोध्या में मुख्य रूप से था। चक्रवर्ती सम्राट होने के नाते उनके हर जगह महल थे, किन्तु मुख्य मुख्यालय उनका अयोध्या मे ही था, जहां से वे शासन संचालित करते थे।
उन्होंने बताया कि राजा तो बड़े-बड़े हुए लेकिन चक्रवर्ती की उपाधि राजा दशरथ जी को ही मिली, जिसका बखान तुलसीदास ने रामचरित मानस में किया है। उस महल का वर्णन भला कौन कर सकता है, जिस महल में चारों भाई खेलकर लीलाएं करते हैं और भक्तों को सुख प्रदान करते हैं।
उन्होंने कहा कि अन्य जगहों पर भगवान श्रीराम को सभी प्रणाम करते हैं, लेकिन इस महल की महिमा यह है इस महल में स्वयं भगवान श्रीराम अपने पिता राजा दशरथ, तीनों माताएं- कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा को प्रणाम करते हैं, वंदन करते हैं। इसीलिए यह दशरथ महल अनूठा है।
उन्होंने कहा कि तुलसीदास जी ने महाराज दशरथ जी के बारे मे लिखा है कि राजा दशरथ जी के बल से इंद्र का सिंहासन सुरक्षित रहता था और जब महाराज दशरथ स्वर्ग में जाते थे तो इंद्र अपना आधा सिंहासन उन्हें बैठने के लिए देते थे। महाराज दशरथ ड़े ही धर्मात्मा थे, बड़े ही सत्यवादी थे। उन्होंने बताया कि जिनके प्रताप से ही श्रीराम ने उनका पुत्र बनना स्वीकार किया।
महंत जी ने बताया कि राजा दशरथ जी का महल काफी पुराना होने के कारण महल काफी पुराना होने के कारण जीर्ण-शीर्ण हो गया था। इसका पुनर्निर्माण राजा विक्रमदित्य ने करवाया था। अयोध्या को फिर से बसाया तो उस समय दशरथ महल के राजमहल का भी निर्माण हुआ। एक बार फिर महल जीर्ण शीर्ण हो गया, जिसका 300 वर्ष पूर्व बाबा रामप्रसाद आचार्य ने जीर्णोद्धार कराया। तब से यह मंदिर के रूप में स्थापित है और यहां पर बाल रूप मे भगवान की नित्य पूजा होती है।
उन्होंने कहा की अगर इस महल को भौगोलिक दृष्टि से देखा जाए तो सबसे ऊंचे स्थल पर दशरथ जी का राजमहल है। भगवान श्रीराम ने अपने पिता को सबसे ऊंचा स्थान दिया है। आगे श्री हनुमान जी विराजमान हैं। बगल में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर है। उन्होंने कहा संत-महंत जो यहां भजन करते हैं, उन्हें शीघ्र सिद्धि मिलती है। काफी लोग यहां आते रहते हैं। उनकी मनोकामना पूर्ण होती।
महंतजी ने बताया कि दशरथ यज्ञ करने के लिए मखोड़ा धाम गए थे, वहां भी दशरथ मंदिर है। नंदीग्राम में भी दशरथ मंदिर है। उन्होंने कहा कि प्राण-प्रतिष्ठा के इस अवसर पर यहां अन्न क्षेत्र प्रारंभ हो गया है। सभी आने वालों को यहां भोज