Sunday, 13 Jul 2025
  • My Feed
  • My Interests
  • My Saves
  • History
  • Blog
Subscribe
Aman Shanti News
  • Home
  • Uttar Pradesh
    • Raebareli
  • Crime
  • Politics
  • Sports
  • Automobile
  • Education
  • MORE
    • Technology
    • Business
    • Health
    • Entertainment
    • Travel
    • Results
    • Examination
    • Recipes
  • 🔥
  • Hindi News
  • Uttar Pradesh
  • Raebareli
  • Raebareli News
  • Raebareli News Live
  • Local
  • Raebareli News Today
  • Raebareli News Today Live
  • yojana
  • Raebareli News Accident
Font ResizerAa
Aman Shanti NewsAman Shanti News
  • Home
  • Uttar Pradesh
  • Crime
  • Politics
  • Sports
  • Automobile
  • Education
  • MORE
Search
  • Home
  • Uttar Pradesh
    • Raebareli
  • Crime
  • Politics
  • Sports
  • Automobile
  • Education
  • MORE
    • Technology
    • Business
    • Health
    • Entertainment
    • Travel
    • Results
    • Examination
    • Recipes
Have an existing account? Sign In
Follow US
© 2022 Foxiz News Network. Ruby Design Company. All Rights Reserved.
Hindi NewsResults

surdas ka janm kahan hua tha ! सूरदास का जीवन परिचय pdf

Ritik Rajput
Last updated: June 16, 2025 3:07 am
Ritik Rajput
Share
SHARE

सूरदास का जीवन-परिचय Surdas Ka Jivan Parichay-

भक्तिकाल की मगुण काव्यधारा को कृष्णभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि सूरदास का जन्म संवा कि० (सन् १७०८ ई०) में आगरा से मधुरा जाने वाली सड़क पर स्थित उनकता नामक ग्राम में हुआ था, लेकिन कुछ विद्वान् उनका जन्म-स्थान मीही नामक ग्राम को मानते हैं। उनके पिता का नाम पं० रामदास साररत सूरदास बड़े होकर गौघाट पर रहने लगे। वे महाप्रभु बल्लभाचार्य के शिष्य थे। बल्लभाचार्य जी के पुत्र ग विठ्ठलनाथ ने श्रीनाथजी का अष्टप्रहर कीर्तन करने के लिए आठ प्रसिद्ध कवियों को नियुक्त किया था, जिन्हें ‘अष्टछाप’ के नाम से जाना जाता है। सूरदास इनमें शीर्षस्थ थे। आगे चलकर श्रीनाथ जी के मन्दिर में कीर्तन करते रहते थे। सूरदास को जन्मान्ध मानने के सम्बन्ध में विद्वानों में मक्य नहीं है। श्रृंगार और वात्सल्य के सम्रार महाकवि सूरदास का गोलोकवास मथुरा के निकट पारसौली नामक ग्राम में संवत् १६४० वि० (सन् १९५८s fo

Contents
सूरदास का जीवन-परिचय Surdas Ka Jivan Parichay-साहित्यिक व्यक्तित्व एवं कृतित्व-कृष्ण भक्ति शाखा के सर्वोच्च कवि-बाल-स्वभाव-चित्रण –श्रृंगार रस-चित्रण –भाषा-शैली –रस एवं अलंकारहिन्दी साहित्य में स्थानविनयवात्सल्यभ्रमर — गीत

साहित्यिक व्यक्तित्व एवं कृतित्व-

जन्मजात काव्य-प्रतिभा के धनी सुरदास ने दास्य एवं सख्य भाव की भक्ति को अपनाया। उनानि मुक्तक पद-रचना करते हुए ‘अष्टछाप’ के कवियों में अपना नाम शीर्षस्य बनाते हुए विशिष्ट काव्य-प्रतिभा का परिचय दिया। उन्होंने सरल सरस पद-रचना के साथ कुछ कूट पद भी रथे। उनके द्वारा लिखे गए ग्रन्थों की संख्या के विषय में पर्याप्त मतभेद हैं। कोई उन्नीम, कोई सोलह कोई सात और कोई पाँच चताता है, किन्तु उनकी कृतियों में से अब तक ‘सुरभागर’, ‘सूरसारावली’ और ‘साहित्य-लहरी’ ही प्राप्त हुई है। ‘सूरसागर’ में कृष्ण लीला. गोपी-प्रेम, मधुरा-गमन, गोपी विरह, उद्धव गोपों संवाद आदि का विशद् वर्णन है। ‘सूरसारावली’, ‘सूरसागर’ का संक्षिप्त संस्करण है और ‘साहित्य सहरी’ कवि के दृष्टिकृट पदों का संग्रह है। ‘सूरसागर’ में सवा लाख पदों का संग्रह है, किन्तु अभी तक सात हजार पद ही प्राप्त हुए है।

Read More UP Board 10th Result 2024 : यूपी बोर्ड 10वी परीक्षा का रिजल्ट, यहाँ से चेक करें

कृष्ण भक्ति शाखा के सर्वोच्च कवि-

सूर भक्तिकाल की कृष्णभक्ति शाखा के सर्वोच्य कवि है, अतः उनके काव्य में कृष्ण की भक्ति के रराथ साथ कृष्ण के लोकमान्य रूप का मनोहर चित्रण पाया जाता है। उनके काव्य में भाव और कला का अ‌द्भुत समन्वय हुआ है। भावपक्ष जितना सजीव, मार्मिक और हृदयस्पर्शी है, कलापक्ष उतना ही सशक्त और प्रभावोत्पादक
सूर कृष्ण-भक्त कवि थे। वल्लभाचार्यजी के सम्पर्क में आने से पूर्व उनकी भक्ति में दास्य भाव विद्यमान था। उसमें निवेदन, करुणा, दीनता, पाचना, हीनता आदि के भाव थे। “मेरी मन अनत काहाँ सुख पावै” तथा “अब कै राखि लेहु भगवान् जैसे पद दास्य भाव से प्रेरित है।

- Advertisement -

Read More bhagwati charan verma : भगवतीचरण वर्मा का जीवन परिचय |

Read More how to apply pm awas yojana : पीएम आवास में 2.67 लाख रुपये तक की छूट के लिए ऐसे कर सकते हैं आवेदन

बाल-स्वभाव-चित्रण –

सुर ने बाल लीला के वर्जन में कृष्ण के सुन्दर, सरल और सजीव चित्र उपस्थित किया है, वैसा अन्यत्र नहीं मिलता।और माखन चोरी की सारी बाल-सुलभ लीलाओं में सूर के बाल-स्वभाव है।मूह बाल-मनोविज्ञान के ज्ञाता दे। गाँ के हृदय की भावनाएँ देखते ही बनती है

जसोदा हरि पालने झुलायें, हलरावै दुलरावै मल्हारी,

श्रृंगार रस-चित्रण –

सूर श्रृंगार के दोनों पक्षों (संयोग और वियोग) का भोक हैं। सलीला, मुरली-माधुरी और चीरहरण में संयोग को चरमावस्या को देखा जा सकता है। राधा की समुटली बार देखते ही कृष्ण रीक्ष जाते हैं, उनका परिचय पूछना कितना स्वाभाविक है-

- Advertisement -

बूझत स्याम कौन तू गोरी। कहाँ रहति काकी तू वेटी, देखी नाहिं कबहुँ ब्रज खोरी॥

किन्तु यही कृष्ण गोपियों को बिलखता छोड़ मथुरा चले जाते हैं। गोपियों का विरह-दुःख दिन दूना रात चौगुना बढ़ जाता है। उनकी आँस्त्रों में दिन-रात आँसुओं की वर्षा होती रहती है और अनु बरसाने में तो उनको आँखें सदा ही सावन भादों के बादलों को भी मात कर देती हैं-

सखि इन नैनन ते घन हारे। विनु ही रितु बरसत निसि-बासर, सदा सजल दोउ तारे ॥

- Advertisement -

संयोग के समय आनन्द को बढ़ाने वाली समस्त वस्तुएँ वियोग को और अधिक तीव्र कर देती है। गोपियाँ भी मधुबन का फलना-फूलना पसन्द नहीं करतीं और लता-कुम्ब उन्हें ‘बैरिन’ लगती है-

“बिनु गोपाल बैरिन भई कुंजें। तब ये लता लगति अति शीतल, अब भई विषम ज्वाल की पुंजें।”

भाषा-

सूरदास को भाषा प्रचलित व्यावहारिक ब्रजभाषा है। यह स्वाभाविक, व्यावहारिक तथा माधुर्य और प्रसाद गुणों से युक्त है। इसमें कहीं-कहीं अरबी, फारसी, पंजाबी, गुजराती, संस्कृत आदि के शब्द पाए जाते हैं। प्रायः उन्होंने अन्य भाषाओं के शब्दों को तद्भव रूप में ही ग्रहण किया है। भाषा में लाक्षणिकता व ध्वन्यात्मकता भी विद्यमान है। जहाँ तहाँ व्याकरण की अशुद्धियाँ और शब्दों की तोड़-मरोड़ भी पायी जाती है। कहीं कहीं मुहागरों और कहावतों के सुन्दर संयोग ने भाषा में चमत्कार उत्पन्न कर दिया है।

शैली –

सूर का सम्पूर्ण काव्य गेव पदों के रूप में है, अतः हम सूर की शैली की ि हैं। हमें उनकी रचनाओं में इस शैली के तीन रूप दृष्टिगोचर होते हैं-

है। यह शैली भावाभिव्यंजक तथा प्रवाहपूर्ण है।
(२) बाल-लीला तथा गोपी-प्रेम के वर्णन में एक कथानक के रूप में, जहाँ कवि का ध्यान भगवान की रसमय लीला का वर्णन करना होता है, वहाँ सूर की शैली सरल प्रवाहपूर्ण और मधुर है। (३) एक पण्डित के रूप में, जहाँ कवि अपने शास्त्रीय ज्ञान तथा आचार्यत्व को दिखाना चाहता है, वहाँ सूर
को शैली अस्पष्ट, कठिन तथा दुरूह हो गयी। ‘साहित्य-लहरी’ में इस शैली का बावहार हुआ है। सूर की रचनाओं में वात्सल्य, श्रृंगार और शान्त रस अपने उत्कृष्ट रूप में पाए जाते हैं। बाल लीला के वर्णन में वात्सल्य, गोपी-प्रेम में श्रृंगार और विनय के पदों में शान्त रस के दर्शन होते हैं। वात्सल्य वर्णन में सूरदास सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। वात्सल्य-वर्णन में वे कोना-कोना झाँक आए हैं।

रस एवं अलंकार

कवि ने अलंकारों का प्रयोग पाण्डित्य प्रदर्शन के लिए नहीं किया है, लेकिन उनकी रचनाओं में प्रायः सभी अलंकार पाए जाते हैं, परन्तु उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि उनके प्रिय अलंकार है।
छन्द-विधान की दृष्टि से देखें तो उनके पदों में चौपाई, दोहा, रोला, तोमर, गीतिका, घनाक्षरी, हरिप्रिया, सवैया, लावनी आदि प्रमुख छन्द है। सूर की समस्त रचनाएँ मुक्तक काव्य के रूप में गेय पदों में हैं। उनके काव्य में संगीत का सुन्दर समन्वय है।

हिन्दी साहित्य में स्थान

संस्कृत साहित्य में जो स्थान आदिकवि वाल्मीकि का है, वही स्थान ब्रजभाषा साहित्य में सूर का है। सूर एक भावुक कवि, सच्चे भक्त, अनुशासित सेवक, सरल हृदय और निर्भीक सन्त पुरुष थे। सूर के बारे में ठीक ही कहा जाता है-
किधाँ सूर को सर लग्यौ, किधाँ सूर की पीर। किथाँ सूर को पद लग्यौ, बेध्यी सकल शरीर ॥

विनय

अब कैं राखि लेहु भगवान।

हाँ अनाथ बैठ्यो द्रुम-डरिया, पारधि साधे ब्रान ॥ ताकै डर मैं भाज्यौ चाहत, ऊपर ढुक्यौ सचान। दुहूँ भाँति दुख भयौ आनि यह, कौन उबारै प्रान ? सुमिरत ही अहि डस्यौ पारधी, कर छूट्‌यौ संधान। सूरदास सर लग्यौ सचानहीं, जय-जय कृपानिधान ॥ १ ॥ मेरौ मन अनत कहाँ सुख पावै।
जैसे उड़ि जहाज कौ पच्छी, फिरि जहाज पर आवै। कमल-नैन कौ छाँड़ि महातम, और देव कौं ध्यावै। परम गंग को छाँड़ि पियासौ, दुरमति कूप खनावै ॥ जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यौ, क्यों करील-फल भावै। सूरदास-प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै ॥

वात्सल्य

हरि जू की बाल-छबि कहाँ बरनि। सकल सुख की सींव, कोटि-मनोज-सोभा-हरनि ॥ भुज भुजंग, सरोज नैननि, बदन बिधु जित लरनि। रहे बिवरनि, सलिल, नभ, उपमा अपर दुरि डरनि ॥ मंजु मेचक मृदुल तनु, अनुहरत भूषन भरनि। मनहु सुभग सिंगार-सिसु-तरु, फौ अद्भुत फरनि ॥ चलत पद-प्रतिबिंब मनि आँगन घुटरुवनि करनि। जलज-संपुट-सुभग-छबि भरि लेति उर जनु धरनि ॥ पुन्य फल अनुभवति सुतहिं बिलोकि कै नंद घरनि। सूर प्रभु की उर बसी किलकनि ललित लरखरनि ॥

भ्रमर — गीत

ऊधौ मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं। हंस-सुता की सुन्दर कगरी, अरु कुञ्जनि की छाँहीं ॥ वै सुरभी वै बच्छ दोहिनी, खरिक दुहावन जाहीं। ग्वाल-बाल मिलि करत कुलाहल, नाचत गहि-गहि बाहीं ॥ यह मथुरा कंचन की नगरी, मनि-मुक्ताहल जाहीं। जबहिं सुरति आवति वा सुख की, जिय उमगत तन नाहीं ॥ अनगन भाँति करी बहु लीला, जसुदा नन्द निबाहीं। सूरदास प्रभु रहे मौन है, यह कहि-कहि पछिताहीं ॥ ४॥ बिनु गुपाल बैरिनि भई कुंजें। तब वै लता लगतिं तन सीतल, अब भईं विषम ज्वाला की पुंर्जे ॥ वृथा बहति जमुना, खग बोलत, बृथा कमल-फूलनि अलि गुंजें। पवन, पान, घनसार, संजीवन, दधि-सुत किरनि भानु भईं भुजै ॥ यह ऊधौ कहियौ माधौ सौं, मदन मारि कीन्हीं हम लुंजें। सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कौं, मग जोवत अँखियाँ भई छुर्जे ॥ ५॥ हमारें हरि हारिल की लकरी। मनक्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी ॥ जागत-सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जकरी। सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्याँ करुई ककरी ॥ सु तौ व्याधि हमकाँ लै आए, देखी सुनी न करी। यह तौ सूर तिनहिं लें सौंपौ, जिनके मन चकरी ॥ ६॥ ऊधौ जोग जोग हम नाहीं। अबला, सार-ज्ञान कह जानें कैसें ध्यान धराहीं ॥ तेई मूँदन नैन कहत हौ, हरि मूरति जिन माहीं। ऐसी कथा कपट की मधुकर, हमतें सुनी न जाहीं ॥ स्रवन चीरि सिर जटा बधावहु, ये दुख कौन समाहीं। चंदन तजि अँग भस्म बतावत, बिरह-अनल अति दाहीं ॥

TAGGED:surdas ka janm kahan
Share This Article
Facebook Whatsapp Whatsapp Telegram Email Copy Link Print
ByRitik Rajput
Follow:
पत्रकारिता में 5 सालों का अनुभव है। वर्तमान में AmanShantiNews.com में बतौर सब एडिटर कार्यरत हैं, और स्पोर्ट्स की खबरें कवर करते हैं। कानपुर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई की है। पत्रकारिता की शुरुआत 2020 में अमन शांति न्यूज से हुई थी। रिसर्च स्टोरी और Sports संबंधी खबरों में दिलचस्पी है।
Previous Article pm kaushal vikas yojana upsc : प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना क्या है आवेदन प्रक्रिया,
Next Article kabir das ka janm kab hua tha — साहित्यिक रचनाएं, भाषा शैली और …
Leave a Comment

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Your Trusted Source for Accurate and Timely Updates!

Our commitment to accuracy, impartiality, and delivering breaking news as it happens has earned us the trust of a vast audience. Stay ahead with real-time updates on the latest events, trends.
FacebookLike
XFollow
InstagramFollow
LinkedInFollow
MediumFollow
QuoraFollow
- Advertisement -
Ad image

Popular Posts

खेरी जिले का इतिहास और संस्कृति

खेरी जिले का इतिहास (History of Kheri District in Hindi) खेरी (अब लखीमपुर खेरी) उत्तर…

By Jrs Computer

Mehandipur Balaji रुकने के लिए विकल्प

मेहंदीपुर बालाजी (Mehandipur Balaji Mandir) में रुकने के लिए कुछ अच्छे विकल्प निम्नलिखित हैं: 1. श्री बालाजी धर्मशाला…

By Jrs Computer

 Prithvi Shaw को देख लें’, यशस्‍वी जायसवाल को खराब फॉर्म के बीच मिली कड़ी चेतावनी

स्‍पोर्ट्स । पाकिस्‍तान के पूर्व क्रिकेटर बासित अली ने फॉर्म के लिए जूझ रहे यशस्‍वी…

By Aditi Singh

You Might Also Like

Budaun

बदायूं का इतिहास और धार्मिक महत्व

By Jrs Computer
Hindi NewsRaebareliUttar Pradesh

Raebareli News Live ! सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा किया गया जिला कारागार का निरीक्षण

By Aditi Singh
Hindi NewsLucknow

Lucknow news ; मायावती का योगी सरकार पर निशाना: मदरसों पर कार्रवाई और शिक्षा व्यवस्था पर उठाए सवाल

By Jrs Computer
Firozabad

फ़िरोज़ाबाद का इतिहास और विकास

By Jrs Computer
Aman Shanti News
Facebook Twitter Youtube Rss Medium

About US


AmanShantiNews : Your instant connection to Breaking News  updates. Stay informed with our real-time coverage across politics, tech, entertainment, and more. Your reliable source for 24/7 news.

Top Categories
  • World
  • Sports
  • Politics
  • Tech
  • Health
  • Travel
Usefull Links
  • Contact Us
  • Advertise with US
  • Complaint
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Submit a Tip

© Aman Shanti News . All Rights Reserved.

Welcome Back!

Sign in to your account

Username or Email Address
Password

Lost your password?