एटा (Etah) का इतिहास (हिंदी में)
स्थान एवं नामकरण:
उत्तर प्रदेश के एटा जिले का इतिहास काफी प्राचीन है। इसका नाम “ईटा” (मिट्टी का ढेर) से लिया गया है, क्योंकि यहाँ मिट्टी के ऊँचे टीले (कोट) पाए जाते थे। कुछ विद्वानों का मानना है कि इसका नाम “एटवा” (एक प्राचीन गाँव) से भी जुड़ा हो सकता है।
प्राचीन इतिहास:
- महाभारत काल:
- एटा का उल्लेख महाभारत में मिलता है। यह क्षेत्र पांचाल राज्य का हिस्सा था, जिसकी राजधानी अहिच्छत्र (वर्तमान में रामनगर, आगरा के पास) थी।
- यहाँ के बटेश्वर नाथ मंदिर का संबंध पांडवों से जोड़ा जाता है।
- मौर्य एवं गुप्त काल:
- मौर्य और गुप्त साम्राज्य के समय यह क्षेत्र व्यापार और धर्म का केंद्र रहा।
- बटेश्वर (एटा) में प्राचीन मंदिरों के अवशेष इसकी समृद्धि को दर्शाते हैं।
मध्यकालीन इतिहास:
- दिल्ली सल्तनत एवं मुगल काल:
- एटा पर मुस्लिम शासकों का प्रभुत्व रहा, जिनमें ग़ुलाम वंश, खिलजी वंश और मुगल शासक शामिल थे।
- अकबर के समय में एटा आगरा सूबे का हिस्सा था।
- औरंगज़ेब के शासनकाल में यहाँ कई मस्जिदें और इमारतें बनीं।
- मराठा एवं नवाबी काल:
- 18वीं शताब्दी में मराठों ने इस क्षेत्र पर कब्जा किया, लेकिन बाद में अवध के नवाबों और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच संघर्ष का क्षेत्र बना रहा।
ब्रिटिश काल:
- 1857 की क्रांति में एटा के स्थानीय लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ बग़ावत की।
- 1904 में एटा को आधिकारिक तौर पर जिला घोषित किया गया।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:
- एटा के क्रांतिकारियों ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।
- महात्मा गांधी ने 1929 और 1934 में एटा का दौरा किया और यहाँ किसान आंदोलन को समर्थन दिया।
आधुनिक एटा:
- आज एटा कृषि, उद्योग और शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र है।
- यहाँ का बटेश्वर मेला प्रसिद्ध है, जिसमें हज़ारों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
निष्कर्ष:
एटा का इतिहास प्राचीन काल से लेकर आधुनिक भारत तक फैला हुआ है। यह सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है।
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