प्रतापगढ़ (राजस्थान) का इतिहास
प्रतापगढ़ राजस्थान के दक्षिणी भाग में स्थित एक ऐतिहासिक जिला है, जिसका इतिहास वीरता, स्वतंत्रता संग्राम और सांस्कृतिक विरासत से भरा हुआ है। यह क्षेत्र मेवाड़ के गौरवशाली इतिहास से जुड़ा हुआ है और यहाँ के शासकों ने मुगलों व ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्राचीन इतिहास
प्रतापगढ़ क्षेत्र प्राचीन काल से ही मेवाड़ राज्य का हिस्सा रहा है। यहाँ के मूल निवासी भील समुदाय के लोग थे, जिन्होंने महाराणा प्रताप को मुगलों के खिलाफ युद्ध में सहयोग दिया। इस क्षेत्र को पहले “देवली“ के नाम से जाना जाता था, जो बाद में प्रतापगढ़ नाम से प्रसिद्ध हुआ।
मध्यकालीन इतिहास
16वीं शताब्दी में महाराणा प्रताप ने मुगल सम्राट अकबर के साथ हल्दीघाटी का युद्ध (1576) लड़ा था। इस युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने इस क्षेत्र को अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया। यहाँ के घने जंगलों और पहाड़ियों ने उन्हें मुगलों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध लड़ने में मदद की।
सिसोदिया राजपूतों का शासन
प्रतापगढ़ पर मेवाड़ के सिसोदिया राजपूतों का शासन रहा। 17वीं-18वीं शताब्दी में यह क्षेत्र मेवाड़ रियासत का महत्वपूर्ण हिस्सा बना रहा। ब्रिटिश काल में यह उदयपुर रियासत के अधीन रहा।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में प्रतापगढ़ के लोगों ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह किया। इसके अलावा, 20वीं सदी के स्वतंत्रता आंदोलन में भी यहाँ के लोगों ने सक्रिय भूमिका निभाई।
प्रतापगढ़ जिले का गठन
स्वतंत्रता के बाद प्रतापगढ़ को उदयपुर जिले का हिस्सा बनाया गया, लेकिन 26 जनवरी 2008 को इसे एक अलग जिले के रूप में स्थापित किया गया।
सांस्कृतिक विरासत
प्रतापगढ़ की संस्कृति राजपूत और भील परंपराओं से प्रभावित है। यहाँ के प्रमुख त्योहारों में गणगौर, तीज और होली शामिल हैं। स्थानीय लोकनृत्य गैर और भील नृत्य यहाँ की सांस्कृतिक पहचान हैं।
प्रमुख पर्यटन स्थल
- कुंभलगढ़ किला (निकटवर्ती) – महाराणा प्रताप का जन्मस्थान।
- मेनाल जलप्रपात – प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर।
- छूली-माता मंदिर – प्रसिद्ध धार्मिक स्थल।
प्रतापगढ़ का इतिहास वीरता, स्वाभिमान और देशभक्ति की गाथाओं से भरा हुआ है, जो इसे राजस्थान के गौरवशाली अतीत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाता है।