खेरी जिले का इतिहास (History of Kheri District in Hindi)
खेरी (अब लखीमपुर खेरी) उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में स्थित एक ऐतिहासिक जिला है, जिसका इतिहास प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण रहा है। यह क्षेत्र अपनी प्राकृतिक समृद्धि, वन्य जीवन और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है।
प्राचीन काल में खेरी
- खेरी जिले का क्षेत्र प्राचीन काल में कोसल महाजनपद का हिस्सा था।
- मध्यकाल में यह क्षेत्र देवीपाटन (देवीपुर) के नाम से प्रसिद्ध था, जो शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
- यहाँ महाभारत काल से जुड़े कुछ साक्ष्य भी मिलते हैं, जिसके अनुसार पांडवों ने अपने वनवास के दौरान इस क्षेत्र में समय बिताया था।
मध्यकालीन इतिहास
- दिल्ली सल्तनत और मुगल काल में खेरी क्षेत्र पर विभिन्न शासकों का नियंत्रण रहा।
- अकबर के समय में यह क्षेत्र दिल्ली सूबे के अंतर्गत आता था।
- नवाबी काल में अवध के नवाबों ने इस पर शासन किया।
ब्रिटिश काल में खेरी
- 1801 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।
- 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में खेरी के स्थानीय लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत में भाग लिया।
- ब्रिटिश शासन के दौरान यह क्षेत्र लखनऊ डिवीजन का हिस्सा बना रहा।
स्वतंत्रता के बाद
- 1947 के बाद खेरी जिला उत्तर प्रदेश का हिस्सा बना।
- 1977 में इसका नाम बदलकर लखीमपुर खेरी कर दिया गया, जो लखीमपुर और खेरी दोनों नामों को जोड़कर बनाया गया।
महत्वपूर्ण स्थल
- देवीपाटन मंदिर – एक प्राचीन शक्तिपीठ।
- दुधवा राष्ट्रीय उद्यान – वन्यजीवों के लिए प्रसिद्ध।
- घुघुती पक्षी विहार – पक्षी प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र।
संस्कृति और अर्थव्यवस्था
- यहाँ की अधिकांश जनता कृषि पर निर्भर है, जिसमें गन्ना, गेहूं और चावल प्रमुख फसलें हैं।
- यह क्षेत्र थारू जनजाति का निवास स्थान भी है, जिनकी संस्कृति यहाँ की पहचान है।
खेरी जिला अपने ऐतिहासिक, धार्मिक और प्राकृतिक महत्व के कारण उत्तर प्रदेश के प्रमुख जिलों में गिना जाता है।
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